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Saturday 8 February 2014

सदैव स्मरणीय श्लोक

१. ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः।।


भावार्थ:- तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बन्धु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो। हे देवताओं के देव! तुम ही मेरा सब कुछ हो।

२. कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् !
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानि सहितं नमामि !!

भावार्थ:-  जो कपूर के समान गौर वर्ण वाले, करुना के सागर, संसार व जगत के सार अर्थात आधार, जिनके गले में नागों (सापों) का हार हो अर्थात जिन्होंने सापों का हार रूप में धारण कर रखा हो | ऐसे भगवान भोलेनाथ मेरे ह्रदय में सदैव विराजमान रहे | तथा हे भोलेनाथ मैं माता भवानी (पार्वती) सहित नमन (प्रणाम) करता हूँ |

३. सुबह उठकर :  
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।

भावार्थ:- हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूलभाग में ब्र्ह्मा जी निवास करते हैं, अतः प्रातः काल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।’

४. सुबह भूमि स्पर्श करने से पहले:  
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

 भावार्थ:- समुद्र्रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली,पर्वतरूप स्तनों से मण्डित भगवान् विष्णु की पत्नी पृथ्वीदेवि ! आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें।


5. गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।। 


भावार्थ:- आपका मुख हाथी का है तथा भूतों के गण आपकी सेवा करते हैं, आप अपने मन-भाते फल सेब खाते हैं। आप उमा के पुत्र हैं तथा सारे शोकों का विनाश करने वाले हैं। आपके चर्ण कमलों में प्रणाम।

6. गायत्री मंत्र :   

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

7. नीलाम्भुज श्यामल कोमलांगम सीतासमारोपितवामभागम ।
पाणों महासायक चारुचापम नमामि रामम रघुवंशनाथम ॥

भावार्थ:-  वो राम जो रघुकुल शिरोमणि है, जिनका श्यामल वर्ण शारीर बिलकुल नीले कमल के सामान है, सीता जी जिनके बाएं तरफ बैठी हैं, जिन्होंने हाथ में धनुष और बाण ले रखा है, ऐसे राम को मै सादर प्रणाम करता हूँ.    


भावार्थ:-  हे देवता ! जो शान्त स्वभाव लिए शेषनाग पर विराजित हैं जिनकी नाभि में कमल का पुष्प विद्यमान हैं जिनका रंग घने बादलों की छाव हैं, जिसकी सुन्दरता पुरे विश्व में विख्यात हैं| यह सम्पूर्ण विश्व का आधार हैं | माँ लक्ष्मी के जीवन साथी, जिनके नयनो में कमल की कोमलता हैं, जिनका सभी योगि निःस्वार्थ भाव से ध्यान करते हैं ऐसे विष्णु का वंदन जिसने सभी भय को हरा जो पुरे विश्व के राजा हैं |

९. वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटिसमप्रभ|
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||

भावार्थ:- हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के सामान हैं | बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो | ऐसी कामना करते हैं |

१०. अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

भावार्थ:- जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं,
उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ।

११. खाना खाते समय : 
ॐ सहना भवतु, सहनो भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्वीनावधीतामस्तु माविद्विषावहै ॥
ॐ शांति:! शांति: !! शांति !!!


भावार्थ:- ईश्वर हमारा रक्षण करे - हम सब मिलकर सुख का लाभ ले - एक दुसरे के लाभ हेतु प्रयास करें -हम सबका जीवन तेज से परिपूर्ण हो - परस्पर कोई द्वेष या ईर्षा न हो ॥

१२. सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥


शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

भावार्थ:-जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥

१३. मंगलम भगवान विष्णु मंगलम गरुणध्वज:
मंगलम पुण्डरीकाक्षाय मंगलाय तन्नोहरी ।।

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