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Saturday 1 February 2014

रोटी का टुकड़ा

रामू और श्यामू जुड़वाँ भाई थे। वे जुड़वाँ तो थे, पर एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे- स्वभाव में भी शरीर की बनावट में भी। रामू लंबे कद का और दुबला-पतला था। रामू दूसरों के साथ जल्दी घुल मिल जाता था और दूसरों की मदद भी करता था, परन्तु श्यामू कंजूस था और किसी से खुलकर बात नहीं करता था। वे कभी एक साथ नहीं रह पाते थे और आपस में अकसर लड़ते-झगड़ते रहते थे।

एक दिन वे दूर शहर की यात्रा पर निकले। वे एक जंगल से होकर गुजर रहे थे। उनकी माँ ने रास्ते के लिए खाना बनाकर दिया था। रास्ते में चलते हुए आपस में लड़ते-झगड़ते वे बरगद के पेड़ के नीचे पहुँचे। पेड़ के पास एक ही सरोवर था। गरमी का महीना था और भरी दुपहरी का समय था। दोनों भाइयों को जोर की भूख लगी थी और वे प्यासे भी थे। वे बरगद के नीचे बैठकर खना खाने के लिए तैयार हो गए।

वहाँ कुछ और राहगीर भी बैठे थे। कुछ खाना खा रहे थे तो कुछ आराम करे रहे थे। रामू और श्यामू ने भी सरोवर के पानी से हाथ-मुँह धोकर अपना खाने का डिब्बा खोल दिया।
रामू के पास तीन रोटियाँ थीं और श्यामू के पास दो। यह देखकर श्यामू को अपनी माँ पर बहुत गुस्सा आया। माँ ने तो शायद रामू का शरीर भारी होने के कारण उसे ज्यादा और श्यामू को कम रोटियाँ दी होंगी; लेकिन श्यामू यह बात नहीं समझ सकता था। तभी एक और राहगीर वहाँ आया और बोला, ‘‘भाई, मैं आप दोनों को भोजन के समय परेशान करने के लिए क्षमा चाहता हूँ; लेकिन मैं बहुत भूखा हूँ और रास्ता भूल गया हूँ। मेरे पास पैसे तो हैं, लेकिन यहाँ आस-पास कोई होटल या ढाबा वगैरह नहीं है। अगर आप लोग अपने खाने में से थोड़ा सा मुझे दे देंगे तो मैं उसके दाम दूँगा।
दोनों भाई तैयार हो गए। रामू इसलिए तैयार हुआ कि उसे पैसा मिल रहा था और श्यामू इसलिए तैयार हुआ कि वह अपनी रोटियाँ बाँटकर खाना चाहता था।

इस प्रकार तीनों ने आपस में रोटियों का बँटवारा करके एक साथ बैठकर खाया। जाने से पहले राहगीर ने चाँदी के पाँच सिक्के उनके सामने रखते हुए कहा, ‘‘भगवान् आप दोनों का भला करे। मेरा पेट भर गया, अब मैं संतुष्ट हूँ।’’
खाना तो किसी को भी खुश और संतुष्ट कर सकता है। लालची-से-लालची आदमी भी कभी-न-कभी संतुष्ट हो जाता है।

रामू ने चाँदी के पाँच सिक्कों में से दो श्यामू को दिए और शेष तीन अपने पास रख लिये। यह देखकर श्यामू आगबबूला हो गया। वह कहने लगा, ‘‘राहगीर को हम दोनों ने ही खाना दिया था, तो दोनों को बराबर पैसे मिलने चाहिए। मुझे आधा सिक्का और दो।’’
इस पर रामू ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘मैंने सोचा कि मेरे पास तीन रोटियाँ थीं, इसलिये मुझे तीन सिक्के मिलने चाहिए और तुम्हारे पास दो रोटियाँ थीं, इसलिए तुम्हें दो सिक्के मिलने चाहिए। लेकिन तुम अगर खुश नहीं हो तो ठीक है, मैं तुम्हें आधा सिक्का और दूँगा; लेकिन मेरे पास अभी खुला नहीं है।’’
उधर, श्यामू जिद करने लगा कि उसे सिक्का अभी और यहीं चाहिए। रामू को कुछ नहीं सूझा तो वह एक साथी राहगीर के पास पहुँचा, जो पास में ही बैठा पहले से उनकी बातें सुन रहा था।

रामू ने उससे पैसे खुले करने के लिए अनुरोध किया। इस पर राहगीर मुस्करा कर कहने लगा, ‘‘मेरा ख्याल है कि यह न्याय नहीं है। तुम तीन सिक्के नहीं ले सकते। अगर तुम चाहों तो मैं तुम लोगों का ठीक-ठीक बँटवारा कर सकता हूँ।’’
श्यामू बहुत खुश था। उसने कहा, ‘‘ठीक है, आप न्याय करें। हम वैसा ही करेंगे जैसा आप कहेंगे।’’
इस पर राहगीर बोला, ‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम दोनों के पास कुल मिलाकर पाँच रोटियाँ थीं और तीन लोगों ने बराबर-बराबर रोटियाँ ली; इसका अर्थ हुआ कि हर रोटी के तीन बराबर हिस्से किए गए। इस प्रकार कुल पंद्रह हिस्से हुए। अब, रोटियों के पंद्रह टुकड़े तीन आदमियों ने मिलकर खाए। श्यामू के पास छह टुकड़े थे और उसने पाँच टुकड़े खाए। इस प्रकार उस अतिथि राहगीर को रामू ने चार टुकड़े खिलाए और श्यामू ने एक। अत: पाँच सिक्कों में रामू को चार और श्यामू को एक सिक्का मिलना चाहिए।’’
इस फैसले से श्यामू बहुत शर्मिन्दा हुआ। उसने एक सिक्का अपने भाई को वापस दे दिया।

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